मुद्दा
2006 में उत्तराखण्ड की स्थानीय महिलाओं को राज्य की सेवाओं में 30% आरक्षण दिया गया था। तब से अब तक प्रदेश की हज़ारों महिलाएँ राज्य की सेवाओं में चयनित हुई हैं और सेवाएँ दे रही हैं। इस आरक्षण के कारण पिथौरागढ़, बागेश्वर, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग जैसे दूरस्थ क्षेत्रों में भी हमारी बहनों ने स्वप्न देखे हैं और उनको यथार्थ बनाया है। ये वो लड़कियाँ हैं, जिनकी तुलना आप गुरुग्राम, फरीदाबाद, नॉएडा, लखनऊ, पटना, दिल्ली या अन्य स्थानों की लड़कियों से नहीं कर सकते। यहाँ तक कि देहरादून के नगर के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में भी लड़कियों को वैसे अवसर उपलब्ध नहीं हैं। न उनके पास बहुत अच्छे महाविद्यालय हैं, न कोचिंग संस्थान और न ही पाठ्य सामग्री की उपलब्धता। अतः अवसर में समानता के लिए यह आरक्षण बहुत आवश्यक था।
क्षैतिज आरक्षण : सभी वर्गों की महिलाओं हेतु
यह आरक्षण केवल एक विशेष वर्ग का नहीं, सभी महिलाओं के लिए था। अर्थात महिला सामान्य वर्ग से हो, अनुसूचित जाति की हो, जनजाति की हो या फिर अन्य पिछड़े वर्ग की, सभी को अपने अपने वर्ग में यह प्राप्त था। अतः इसके जाने से प्रभाव भी सभी पर पड़ेगा।
उत्तराखंड की लाखों महिलाएँ इससे सीधे प्रभावित होंगी। अगर अन्य प्रदेशों की महिलाऐं भी इसी आरक्षण के तहत ले ली जाती हैं, तो यह निश्चित है कि यहाँ की लड़कियों के लिए सरकारी नौकरी के अवसर बहुत कम हो जायेंगे। अतः इस विषय में जागरूकता फ़ैलाने की बहुत आवश्यकता है।
न्यायालय का निर्णय
24 अगस्त, 2022 को नैनीताल उच्च न्यायालय के निर्णय ने उत्तराखण्ड की महिलाओं से यह अधिकार छीन लिया है। इस सम्बन्ध में एक याचिका हरियाणा और उत्तरप्रदेश की लड़कियों द्वारा दाखिल की गयी थी।प्राप्त सूचना के अनुसार, न्यायालय ने अन्य राज्यों की लड़कियों को भी उत्तराखंड में महिला आरक्षण में लाभ देने की बात कही है। इस विषय में विस्तृत विश्लेषण बाद में प्रकाशित किया जाएगा।
अन्य राज्यों का उदाहरण
ऐसा नहीं है कि अन्य किसी राज्य में महिला आरक्षण स्थानीय महिलाओं के लिए नहीं है। उदाहरण के लिए असम राज्य के अधिनियम में देखें।
स्पष्ट लिखा है कि मात्र असम राज्य की लड़कियों हेतु यह प्रावधान है क्यूँकि "वे सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी हैं और उनका प्रतिनिधित्व असम राज्य की सेवाओं में उचित अनुपात में नहीं है", अतः यह प्रावधान किया जा रहा है। यह शक्ति राज्य सरकार को संविधान के अनुच्छेद 16(4) में मिली है।
अब आगे क्या ?
चूँकि यह स्पष्ट है कि राज्य सरकार ही इस कार्य को कर सकती है, अतः हमें उसके कार्य को सरल बनाना है। इस सम्बन्ध में हम तीन अलग अलग कार्य करेंगे : -
- क़ानूनी स्तर पर न्यायालय में यह लड़ाई लड़ना, जिसका कार्य अभी चल रहा है।
- सामाजिक स्तर पर यह सन्देश और इसका महत्त्व लोगों तक ले जाना। इस हेतु सोशल मीडिया, व्हाट्सप्प, आदि का महत्त्वपूर्ण योगदान रहेगा। आपको अपने परिवार, मित्रों और अन्य सम्बन्धियों से यह बात करनी होगी। विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक, छात्र, महिला और अन्य संगठनों को इस आंदोलन से जोड़ना होगा।
- राजनीतिक स्तर पर जनप्रतिनिधियों को इस विषय में अनुरोध करके। अपनी जितनी पहचान/पहुँच है, सब लगाकर आपको अपने जनप्रतिनिधियों को इस विषय में जागरूक करना होगा और उन्हें बताना होगा कि आपका वोट इस बात पर ही निर्भर है। उन्हें फ़ोन, ईमेल या घर जाकर यह बताएं।
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